कभी कभी इन दिनों

कभी कभी इन दिनों

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue 2010
Publication Name इंद्रप्रस्थ इंटरनेशनल
Link https://www.flipkart.com/hi/kabhi-dinon/p/itm8c2459d8fe7d2

Description

दौड़

 

वह आगे-आगे था

मैं उसके पीछे-पीछे

मेरे पीछे अनेक लोग थे

हाँ, यह दौड़-प्रतिस्पर्धा थी

 

लक्ष्य से कुछ ही दूर पहले

एकाएक उसकी चाल

धीमी पड़ गयी और रुक गया

मैं आगे निकल गया

 

जीत के गर्वीले सुख के

उन्माद से में झूम उठा

उसके हार-जन्य दुख की कल्पना से

मेरा सुख और भी उन्मत्त हो उठा

'मूर्ख कहीं का' मैं मन ही मन भुनभुनाया

 

उन्माद की हँसी हँसता हुआ

मैं लौटा तो देखा -

वह किसी गिरे हुए

आदमी को उठा रहा था

और उसका चेहरा नहा रहा था

सुख और शांति की अपूर्व दीप्ति से

धीरे-धीरे मुझे लगने लगा कि

वह लक्ष्य तो उसके चरणों में लोट रहा है

जिसके लिए मैं

वेतहाशा दौड़ता हुआ गया था

और वह मुझसे पहले ही

दौड़ जीत चुका है।

 

(12.4.07)