उस बच्चे की तलाश में

उस बच्चे की तलाश में

Author रामदरश मिश्र
Year of Issue 2007
Publication Name नमन प्रकाशन
Link

Description

रामदरश जी की पूरी काव्य-यात्रा का जायजा लें तो एक बात पर हमारा ध्यान जाये बगैर नहीं रहता कि न सिर्फ गीत से उसकी शुरुआत हुई है, बल्कि यह भी साफ झलकता है कि गीत उनसे कभी नहीं छूटा। यह दीगर बात है कि उनके गीत शुरू में फैले-फैले और थोड़े स्फीति-परक थे। वे बाद में सघन, मन्द्र और गंभीर होते चले गये। ये गीत सिर्फ गीत नहीं हैं, वे जमीन की आवाजें हैं। वे जीवन के स्वर हैं जिनमें जीवन के सुख-दुख का संगीत बहा जाता है और कहीं न कहीं लोक-जीवन की एक गहरी मिठास है। यह उनकी समूची कविता का मिज़ाज है। संकोच और धीरज तो कहीं न कहीं उन्हें गीतों की विरासत से मिला है जो उन्हें न कहीं बेसुरा होने देता है न बेताल। उन्हें बेतरह फैलने भी नहीं देता। वे कम कहते हैं, अपने धीरजवान शब्दों में कहते हैं और आखिर कह ही लेते हैं जो कहना होता है। रामदरश जी चाहे समकालीन हिंदी कविता के झंडाबरदार न रहे हों लेकिन वे ऐसे कवि हैं जिन्होंने हिन्दी कविता को भीतर से माँजा है। उसे बहुत-सी गुत्थियों से छुटकारा दिलाकर सादा सरल बनाया है, उसे जनता के ज्यादा नज़दीक, बल्कि खास और आम सबकी अपनी चीज़ बनाकर समकालीन कविता का एक नया लोक संस्कार किया है। यह आकस्मिक नहीं कि साठोत्तरी कविता में इस लंबी कविता-यात्रा में किसिम किसिम की कविता के आँधी-तूफान में जब हम अच्छे से अच्छे कवियों को उपनी जमीन से हटते और बहकते देखते हैं तब रामदरश जी ही थे जो अविचल धीरज से अपने आश्वस्तिकारी कदमों से अपनी राह पर बढ़ते नज़र आ रहे थे। रामदरश जी बगैर कोई दावा किये एक सच्चे और खरे और बड़े मार्क्सवादी लेखक हैं। उन्होंने अपनी मार्क्सवादी समझ को सीधे-सीधे जनता के संघर्ष से जोड़ा, हिन्दुस्तानी तहजीब और ज़मीन तथा उसकी पहचान से जोड़ा। आज वे उसी तरह अडोल धीरज के साथ अपने रास्ते पर आगे बढ़ते चले जा रहे हैं।

 

- डॉ. प्रकाश मनु